Monday 13 August 2012


वक्त के ऐसे दौर से गुज़र गया हूँ मैं

वक्त है एक कसौटी जहा पे घिस घिस के

बना सोना खरा इतना निखर गया हूँ  मैं

हर एक मोती तलाशा बहुत ही चुन चुन के

समेटा जिन्दगी पर  खुद बिखर गया हूँ  मैं

गम ओ खुशी का बहुत फर्क न रहा अब तो

वक्त के ऐसे दौर से गुज़र गया हूँ मैं

प्यार अपनों का परायों का भी है मिला इतना

हुआ मगरूर सा कुछ यूँ बिगड़ गया हूँ मैं  

वक्त हालात से बनती है ये रुबाई गज़ल

ऐसे हालात में अब तो उतर गया हूँ मैं

रहा महरूम भले साकी से पैमाने से   

अपनी नज्मो के नशे से ही भर गया हूँ मैं   

जितेन्द्र मणि

       

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