Tuesday, 18 March 2014


खुली थी आँख तब भी जब ये मेरी आँख लगी  

 

 

अज़ब है आंखों की  लगी की दास्ताँ साहिब

आंख लगी तक नहीं हमारी मुई आँख लगी

आज जब आँख लगी दिल्लगी तो ये देखो

लगी ना एक पल को आँख जब से आँख लगी

आग लग जाय ऐ खुदा इस आँख लगने को

लग गयीं आँख पर मुई ना मेरी आँख लगी

इंतेजारी मे दर् पे लग गयी मेरी आंखे

खुली थी आँख तब भी जब ये मेरी आँख लगी  

  जितेन्द्र मणि

अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त

दिल्ली

 

 

चलो इस हिल रही दीवार को गिरते है

 

 

हम तो इन आधियों का जोर आजमाते है

आँधियों मे ही हम  चराग को जलाते है

अपनी उल्फत है इस जोर अजमाइश से

मगर चराग मे  अपना लहू जलाते है

लाख मुझको मिटाना चाहा आंधियों ने मगर

इन्ही हवाओं की तपिश से ही जल जाते है

सिर्फ हंगामे सब अब बात नहीं हल होगी

चलो इस हिल रही दीवार को गिरते है

सुना है रोशनी आती है घुप्प अंधेरे पे

चलो अँधेरा थोड़ा और हम बढाते है

बड़ा कमाल महलों मे ना नीद आये उन्हे

बड़े सुकून से सड़क पे हम सो जाते है

अज़ब है दुनिया तेरी ओ मेरे परवरदिगार

कुछेक भूख से ,,कुछ खा के भी मर जाते है

 

 

  जितेन्द्र मणि

अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त

दिल्ली

नूर ए महफ़िल हो गये

 

 

बस ज़रा तंगी हुई क्या हम ही संगदिल हो गये

तंग घर तंग सी नज़र सब लोग तंगदिल हो गये

इस क़दर तंगी  ने घेरा अपने सब देखो ज़रा

तंग रिश्ते तंग  गलिया तंग  मुहल्ले हो गये

जो भी बुजदिल नीच थे बेचा वतन की आबरू

नामचीन है आज वो हम तो निठल्ले हो गये

मर गया वो सड़क पे भूखा निवाले के बिना

क्या यहाँ के लोग यारो इतनी कातिल हो गये

जितनी जो कमज़र्फ थे थे लालची बैमान थे

सब वही मक्कार अब तो नूर ए महफ़िल हो गये

हर खिलौने को नहीं अच्छा बड़ा महंगा कहे

क्या हम बच्चे की नज़र मे भी निकम्मे हो गये

जितेन्द्र मणि

अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त

दिल्ली   

Tuesday, 24 December 2013


              ग़ज़ल

किसी के दिल को तु सुकून जरा दे के देख

बड़ी दुआए प्यार बेशुमार पायेगा

खुदा का अक्स तु बन्दा ए खुदा मे तो देख

बड़ा सुकून तु दिल का करार पायेगा

तु अपना नूर ये दौलत जरा लुटा के देख

तु खुद ही बंदे ये फसल ए बहार पायेगा

दिल की गहराइयों से तु पुकार के तो देख

यार तो यार ,खुदा दौड़ा चला आएगा

जितेन्द्र मणि  

Monday, 9 December 2013


            गज़ल
है इनायत नज़र की कितना गज़ब अंदाज़ है
अक्स उभरा क्या खुदाया आपकी तहरीर मे

अपनी हिम्मत से लिखेंगे अपनी किस्मत आप ही
बुजदिलों सा ना कहेंगे ,था ना ये तकदीर मे

 

प्यार की डोरी से खुद ही बंध गये हँसते हुए
वरना हमको बाँध ले वो दम कहा जंजीर मे


वक्त जब सजने का आइना हमसे रूठा आइना
आइना धोते रहे पर दाग था तस्वीर मे

 

ज़ज्ब ए तूफ़ान से हम जीतते है बाजियां
हौसले हिम्मत के आगे दम है क्या शमशीर मे

 

इन्तेज़ार ए यार की हसरत मे काटी जिंदगी
वो मिला मुझको जनाज़ा वक्त के आखीर मे

जितेन्द्र मणि  

Friday, 29 November 2013

फ़र्ज़ अपना ही दोनों निभाते रहे



टूट कर उनको चाहा सिला ये मिला
उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे

जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए
रूह तक वो हमारी जलाते रहे
...
हमने दामन मे उनको समेटा बहुत
दाग दामन मे वो बस लगाते रहे

हर वफ़ा मेरी हँस के भुलायी मगर
बेवफाई वफ़ा से निभाते रहे

जितनी उनको भुलाने की कोशिश करी
उतना ही वो हमे याद आते रहे

शेर जितने गज़ल के जिए उनके संग
उम्र भर हम वही गुनगुनाते रहे


फ़र्ज़ अपना ही दोनों निभाते रहे
रूठते वो रहे हम मनाते रहे

जितेन्द्र मणि

मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे     

 

टूट कर उनको  चाहा सिला ये मिला

उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे

जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए

रूह तक वो हमारे जलाते रहे

हमने दामन मे उनको समेटा बहुत

दाग दामन मे वो बस लगाते रहे

हर वफ़ा मेरी हस के भुलाया मगर

बेवफाई वफ़ा से निभाते  रहे

लाख उनको भुलाने कि कोशिश तो की

उतना ही वो हमे याद आते रहे

गज़ल के शेर जितने जिए उनके संग

मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे    

जितेन्द्र मणि