Friday, 29 November 2013


मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे     

 

टूट कर उनको  चाहा सिला ये मिला

उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे

जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए

रूह तक वो हमारे जलाते रहे

हमने दामन मे उनको समेटा बहुत

दाग दामन मे वो बस लगाते रहे

हर वफ़ा मेरी हस के भुलाया मगर

बेवफाई वफ़ा से निभाते  रहे

लाख उनको भुलाने कि कोशिश तो की

उतना ही वो हमे याद आते रहे

गज़ल के शेर जितने जिए उनके संग

मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे    

जितेन्द्र मणि  

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