मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे
टूट कर उनको चाहा सिला ये मिला
उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे
जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए
रूह तक वो हमारे जलाते रहे
हमने दामन मे उनको समेटा बहुत
दाग दामन मे वो बस लगाते रहे
हर वफ़ा मेरी हस के भुलाया मगर
बेवफाई वफ़ा से निभाते रहे
लाख उनको भुलाने कि कोशिश तो की
उतना ही वो हमे याद आते रहे
गज़ल के शेर जितने जिए उनके संग
मान पूरी गज़ल गुनगुनाते रहे
जितेन्द्र मणि
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