फ़र्ज़ अपना ही दोनों निभाते रहे
टूट कर उनको चाहा सिला ये मिला
उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे
जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए
रूह तक वो हमारी जलाते रहे
...
हमने दामन मे उनको समेटा बहुत
दाग दामन मे वो बस लगाते रहे
हर वफ़ा मेरी हँस के भुलायी मगर
बेवफाई वफ़ा से निभाते रहे
जितनी उनको भुलाने की कोशिश करी
उतना ही वो हमे याद आते रहे
शेर जितने गज़ल के जिए उनके संग
उम्र भर हम वही गुनगुनाते रहे
फ़र्ज़ अपना ही दोनों निभाते रहे
रूठते वो रहे हम मनाते रहे
जितेन्द्र मणि
टूट कर उनको चाहा सिला ये मिला
उम्र भर अपने टुकड़े उठाते रहे
जिस्मो जाँ से हमारे अलग क्या हुए
रूह तक वो हमारी जलाते रहे
...
हमने दामन मे उनको समेटा बहुत
दाग दामन मे वो बस लगाते रहे
हर वफ़ा मेरी हँस के भुलायी मगर
बेवफाई वफ़ा से निभाते रहे
जितनी उनको भुलाने की कोशिश करी
उतना ही वो हमे याद आते रहे
शेर जितने गज़ल के जिए उनके संग
उम्र भर हम वही गुनगुनाते रहे
फ़र्ज़ अपना ही दोनों निभाते रहे
रूठते वो रहे हम मनाते रहे
जितेन्द्र मणि
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