नूर ए महफ़िल हो गये
बस ज़रा तंगी हुई क्या हम ही संगदिल हो गये
तंग घर तंग सी नज़र सब लोग तंगदिल हो गये
इस क़दर तंगी
ने घेरा अपने सब देखो ज़रा
तंग रिश्ते तंग
गलिया तंग मुहल्ले हो गये
जो भी बुजदिल नीच थे बेचा वतन की आबरू
नामचीन है आज वो हम तो निठल्ले हो गये
मर गया वो सड़क पे भूखा निवाले के बिना
क्या यहाँ के लोग यारो इतनी कातिल हो गये
जितनी जो कमज़र्फ थे थे लालची बैमान थे
सब वही मक्कार अब तो नूर ए महफ़िल हो गये
हर खिलौने को नहीं अच्छा बड़ा महंगा कहे
क्या हम बच्चे की नज़र मे भी निकम्मे हो गये
जितेन्द्र मणि
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त
दिल्ली
Good Compositions, straight from heart.
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