Tuesday 3 September 2013


क्या यहाँ के लोग यारों इतनी कातिल हो गये

बस जरा तंगी हुई क्या भाल बोझिल

 हो गये 

तंग घर तंग सी नज़र ये लोग तंगदिल हो गये

इस क़दर तंगी ने घेरा अपनों को देखो जरा

तंग राहें तंग गलियां , तंग मुहल्ले हो गये  

जो भी बुजदिल नीच थे बेचा वतन की आबरू

नामचीन वही है अब ,हम तो निठल्ले हो गये  

मर गया वो सड़क पे भूखा निवाले के बिना

क्या यहाँ के लोग यारों इतनी कातिल हो गये

जितनी जो कमज़र्फ थे बईमान थे गद्दार थे

सब वही मक्कार अबतो नूर ए महफ़िल हो गये

जितेन्द्र मणि

अतिरिक्त उपायुक्त पुलिस

दिल्ली

 

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