Wednesday 11 September 2013


     हिंदी दिवस

१४ सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जायेगा ,मगर दिवस मनाने से किसी भाषा का उत्थान नहीं होता मुझे तो याद नहीं किसी देश मे उसकी मूल भाषा के उत्थान हेतु भाषा दिवस मनाया जाता हो ,जब इसराइल आज़ाद हुआ हजारो वर्ष पुरानी हिब्रू भाषा को लागू कर दिया गया ,सब ने उसे पढाना प्रयोग मे लाना शुरू कर दिया ,मगर हाय रे हिन्दी  तेरा कैसा ये दुर्भाग्य .बड़े दुःख की बात है यहाँ आस्था मे भी तर्क किया जता है .अगर राष्ट्रगान ,राष्ट्रगीत,राष्ट्रीय पशु ,पक्षी किसी पर मतभेद नहीं और हो भी नहीं सकता तो राष्ट्रभाषा पर ही क्यों ,बड़े शर्म की बात है हम तुष्टिकरण की राजनीति राष्ट्रीय विषयो पर भी कर रहे है जापान क्या जापानी पढ़ के आगे नहीं है ,चीनी क्या चीनी भाषा पढ़ के आगे नहीं है,मगर हम अंग्रेजी भाषा पर आश्रित है ,ये भाषा की गुलामी कब खत्म होगी

भारतेंदु जी ने कहा था

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल

क्या हम इसे समझ पायेंगे ,शायद नहीं ,हमेशा दिवस पखवारा मनाया जायेगा ,निर्देश दिए जायेंगे मगर क्या कभी शीर्ष स्तर पर कोई गंभीर प्रयास होगा ,क्या राजभाषा समिति के दिशा निर्देशों को गंभीरता से लिया जाएगा ,या ऐसे हि साल मे एक बार हिंदी की वर्षी मना कर इसका श्राद्ध किया जाता रहेगा ,कितने वरिष्ठ अधिकारियो ने ऊपर से नोटिंग हिंदी मे लिखी गयी कितनो द्वारा हिंदी में टीप दी गयी इसका कोई हिसाब लिखा गया ,या पखवारा मन कर सब कुछ खत्म , क्या आस्था के रूप मे हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते.. हम राष्ट्रीय प्रतीकों की तरह जैसे राष्ट्रीय गान ,गीत ,पशु ,पक्षी ही की तरह सम्मान से स्वीकार नहीं कर सकते , क्या जापान अगर अंग्रेजी मे काम नहीं कर रहा तो किसी से पिछड़ गया है  ,क्या चीन अंग्रेजी मे काम ना करने के कारण किसी से पिछड़ गया ,शायद नहीं बस ये हमारी गुलाम मानसिकता है क्युआ ये नहीं हो सकता कि सारे काम हिंदी मे हो और जिसे नहीं समझ मे आये उसे अंग्रेजी अनुवाद दे दिया जाय ,जहा जिन्दुस्तान मे ५० करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते लिखते समझते पढते है उसमे सरकारी काम ना हो कर उस भाषा मे होता है जिसमे लिखने बोलने पढ़ने समझने वाले शायद १० करोड़ लोग भी नहीं होंगे .लेकिन बस समितियाँ बनती  गयी ,बैठके होती रही ,मगर उनका अनुपालन कभी नहीं हुआ गृह मंत्रालय जैसे शसक्त मंत्रालय के अधीन रह कर भी राजभाषा समिति कि रिपोर्टे धूल चाटती  रही ,और हम राष्ट्रभाषा का राजभाषा दिवस मनाते रहे ,वर्षी कि तरह ,प्रयास किसी ने नहीं किया बस प्रयास का प्रयास लगातार होता रहा ,अभी भी समाया है हिंदी को भारत के माथे कि बिंदी बनाना ही होगा

  जितेन्द्र मणि

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