Monday 9 December 2013


            गज़ल
है इनायत नज़र की कितना गज़ब अंदाज़ है
अक्स उभरा क्या खुदाया आपकी तहरीर मे

अपनी हिम्मत से लिखेंगे अपनी किस्मत आप ही
बुजदिलों सा ना कहेंगे ,था ना ये तकदीर मे

 

प्यार की डोरी से खुद ही बंध गये हँसते हुए
वरना हमको बाँध ले वो दम कहा जंजीर मे


वक्त जब सजने का आइना हमसे रूठा आइना
आइना धोते रहे पर दाग था तस्वीर मे

 

ज़ज्ब ए तूफ़ान से हम जीतते है बाजियां
हौसले हिम्मत के आगे दम है क्या शमशीर मे

 

इन्तेज़ार ए यार की हसरत मे काटी जिंदगी
वो मिला मुझको जनाज़ा वक्त के आखीर मे

जितेन्द्र मणि  

1 comment:

  1. ये आगाज़ है तो अंजाम क्या होगा? क्या खूब!

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