Thursday 11 April 2013


      ज़माने के लिए

ये संग दिलों का शहर है 

चलना सम्हल के तुम

यहाँ पलकों पे बिठाते

है गिरने हे लिए

यहाँ कुछ रिश्ते जी रहे

 है लोग दुनिया मे

चाहिए उनको भी कुछ

लोग दिखाने के लिए

बिना जज़्बात वो निभा

रहे है रिश्तों को

उनको चाहिए ये रिश्ते

सिर्फ जमाने के लिए

जितेन्द्र मणि

 

 

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