Tuesday 17 July 2012

काट दो मेरे हाथ फिर भी माँगूगा अपना मैं हक

काट दो मेरे पैर फिर भी बधोंगा मंजिल की ओर

काट दो जबान फिर भी बोलूँगा सच्ची बाते
...
रोक लो रहे मेरी खोज लूँगा नयी डगर

फोड़ दो मेरी आँखे फिर भी देखूंगा विजय के सपने

तोड़ दो मेरी उम्मीदे फिर भी हौसला रखूँगा मैं

कर लो चाहे जो भी प्रयास अब नहीं रुकुंगा मैं

हौसले से अडिग अविचल ओनी हिम्मत से भरा

जब तलाक है जान अब चलता रहूँगा मैं

स्वरचित

जीतेन्द्र मणि

सहायक आयुक्त पुलिस

पी सी आर

पुलिस मुख्यालय

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