Tuesday 31 July 2012


मंदिरों मस्जिदों मे कम ही क़दम रखता हूँ

दिल तो कर ही दिया निसार मैने उल्फत में

दोस्तों के लिए जाँ दूँ वो  जिगर रखता हूँ

मेरे तो दुश्मनों से भी है रश्क दुनिया को

दोस्त अपने बहुत चुन के अज़ीज़ रखता हूँ

कर सकूँ अपने दोस्तों से दोस्ती पूरी

इतनी तो हैसियत ऐ दोस्त मैं  भी रखता हूँ

काम हर बेबसी के मारों के मैं आ पाऊँ

खुदा इतना रसूख़ दे ये दुआ रखता हूँ

खुश रहे सब इसी मे खुशियां है मेरी या खुदा

सबकी हो खैर यही इल्तेज़ा मैं रखता हूँ

मणि अलफ़ाज़ मेरा दिल का ये मुजस्सिम है

इस  भरी दुनिया मे मैं पाक़ जिगर रखता हूँ

जब से खुद मे खुदा को देखा हो खुदी से जुदा

मस्जिदों  मंदिरों मे कम ही क़दम रखता हूँ

जितेन्द्र मणि   

1 comment:

  1. bahut badhiya sir.if there is god it is within you me and every living being and serving living being for their prosperity is the real service to god......

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