Tuesday 24 July 2012


            लंगर की तरह

अजाब माहौल है गुमसुम यहाँ सब बैठे है

लग रहा है ये समां मौत के मंजर की तरह

आज हर  बात सच की दफ़न कर दी जाती है

चुभता है सच उन्हे दिल मे एक खंज़र की तरह

लाख कोशिश करो पैदा न यहाँ कुछ होगा

ये जमी हो गये बेकार सी बंज़र की तरह

बस वही लोब बचा सकते है इस कश्ती को

डूब सकते हो जो मजधार मे लंगर की तरह

वो कितने दर्द के दरिया को भी पी सकता है  

उसकी ताक़त है “मणि “ गहरे समंदर की तरह  

जितेन्द्र मणि

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